Rumored Buzz on bhoot ki kahani
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Bhoot ki kahani
उसके बाद मैं बाइक चलने के साथ-साथ इधर उधर की बाते कर रहा था और वो बड़े प्यार से मेरे हर सवालो का जवाब दे रही थी । सच कहो तो मुझे भी उनसे बात करने में अच्छा लग रहा था और मैं इस छोटे से सफर मैं उनसे काफी घुल-मिल गया था ।
मैंने मन ही मन में अपने रब का शुक्रिया किया जिस से मेरी उस भटकती आत्मा से कोई नुकसान नहीं हुआ , शायद ये मेरे अच्छे परिणामो का फल था ।
जब उन्होंने जंगल में प्रवेश किया तो देखा, सूरज की रोशनी पेड़ के घने पत्तो से संघर्ष करते हुए जमीन पर गिर रही थी। जंगल एकदम शांत था। उनको डर भी बहोत लग रहा था, लेकिन उनकी उत्तेजना ने उन्हें आगे बढ़ाया। कभी-कभार उल्लू की आवाज को छोड़कर जंगल में सन्नाटा था।
आगे एक पहाड़ था मैंने अपनी बाइक की रफ्तार तेज़ कर दी और तेजी से मैं अपने घर आया ।
प्रसाद ने रमेश उसकी घबराहट की वजह पूछी तो रमेश संत खड़ा था। अरे रमेश, क्या हुआ? इतना घबराए हुए क्यों हो? प्रसाद ने उसे बताया कि आज उसे आने में देरी हो गई, क्योंकि उसकी पत्नी की तबीयत खराब हो गई थी। यह बात सुनकर रमेश को धक्का लगा। वह भागता हुआ रूम में गया। उसने देखा कि प्रसाद डेस्क पर बैठा हुआ था और अपना काम कर रहा था। उसने कमरे से बाहर जाकर देखा तो वहां कोई भी नहीं था।
तो मैंने देखा कि जैसे कोई सफेद साड़ी पहनकर,बाल खोलकर,लाल कलर की लाली लगाकर, जोर-जोर से हंस रही थी। मैने डर के मारे आंख नीचे कर लि.और नीचे देखने लगी। तभी कोई के चिल्लाने की आवाज आई.
एकदिन गांब के कुछ साहसी बच्चे उस भूतिया घर में जाने का और उस घर में घूमने का फैसला किया। बच्चे जब घर के सामने गए तो देखा सिर्फ खिरकी खुली हुई है। और बे सभी उसी खिरकी से अनादर चले गए। बे अँधेरे में घर के अंदर घूम ही रहे थे की अचानक से खिरकी बंद हो गई। यह देखकर सारे बच्चे डर गए।
और तभी मुझे याद आया कि वो जो चिट्ठी आई थी। उसमें उसका पता तो होगा।
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क्या पता इसको भी इन चीजों में दिलचस्पी हो दूसरे दिन हम लोगों ने ऐसा ही किया तो रात में वह अंदर खेलने नहीं आया। हम लोग ऐसा चार-पांच दिन में एक बार रख के आ जाते थे । एक बार गांव वालों ने देख लिया और पूछा तो हमने सारी बातें बता दी । तब से आज भी वहां पर गांव वाले बीड़ी माचिस ताश के पत्ते हफ्ते में एक बार जरूर चढ़ाते हैं। और आज भी वह आत्मा किसी को परेशान नहीं करती।
उसने मुझे बताया की मैं यहाँ एक ऑफिस मैं काम करती हूँ और मैं पहाड़ के पीछे एक छोटी सी बस्ती हैं वहां रहती हूँ ।
नगर में पमिनाबहन के अनुभव की बात फैलने पर नगर के किसी अनुभवी व्यक्ति के द्वारा यह पता चला कि जिस मकान में पमिनाबहन का परिवार रहता है, उस जगह के पुराने मालिक के पास से, उसके सगे संबंधियों ने वह मकान हड़प लिया था। और मरते वक्त भी मकान मालिक का जी उसी मकान में था, इसी कारण वह इन्सान अपने मकान में किसी भी व्यक्ति की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं कर पाता था।
पमिनाबहन जिस मकान में रहती थीं उस मकान में अचानक अजीबो-गरीब घटनायेँ होने लगीं। जैसे कि –